उदारीकरण के बाद देश में एक शब्द बहुत प्रचलित हुआ है- संगठित व्यापार। मूर्ख मीडिया ने संगठित बाजार और व्यवसाय की अवधारणा को इस तरह से प्रस्तुत किया है मानों यही मोक्ष का द्वार है। इस तरह के प्रचार में मीडिया समूहों का हित छिपा है क्योंकि संगठित बाजार उन्हें सीधे पैसा देता है। इसलिए मीडिया लगातार यह प्रचारित कर रहा है कि जब तक सारा व्यवसाय संगठित क्षेत्र में नहीं आ जाता देश का विकास नहीं हो सकता। इससे कितना नुकसान होगा, कितनी त्राहि-त्राहि होगी इसकी चर्चा कोई नहीं कर रहा है।
देश में कुल कार्यक्षमता का 92 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में लगा है। असंगठित क्षेत्र देश की जीडीपी में 60 फीसदी हिस्सेदारी करता है। 98 फीसदी इंटरप्राइजेज असंगठित क्षेत्र में हैं। इस पूरे असंगठित क्षेत्र को न तो सरकार से कोई प्रोत्साहन है और न ही कोई सहयोग। अब संगठित व्यवसाय के नाम पर बड़ी कंपनियां अपना कब्जा चाहती हैं। मूर्ख मीडिया, प्रशासन और न्यायपालिका इस काम में उनकी मदद कर रही हैं। करोड़ों लोगों का भविष्य खतरे में है। यह संगठित व्यापार संगठित अपराध है, क्या इसकी वकालत जायज है?
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