इस कला की समीक्षा आप करिये
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- निठल्ला चिंतन
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एक दशक से इंटरनेट पर हिन्दी पत्रकारिता का जाना पहचाना नाम। नयी तकनीकि के प्लेटफार्म पर हिन्दी पत्रकारिता के इस पहले जनप्रयास का सफर निरंतर जारी है। View all posts by visfot news network
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बहुत अच्छे संजयजी, सबकुछ सामने है स्पष्ट है फिर भी कुछ लोग आँखें मूँद लेते हैं। कहने को तो बहुत कुछ है पर उन्हें नहीं समझाया जा सकता।
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सभी ब्लागरों से अनुरोध है कि कला पर चर्चा करते वक्त धर्म व सम्प्रदाय को बीच में न लाएं. बहस इस पर जरूरी है कि कला की अभिव्यक्ति की सीमा क्या हो. कौन रचना अश्लील मानी जा सकती है. आदि-आदि.
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विशेष जी आपने सही कहा . अश्लीलता के सम्बन्ध मे विगत दिनो दिसम्बर 2006 मे सुप्रीम कोर्ट ने एक जजमेन्ट दिया था जिसमे पक्षकार टाइम्स आफ इन्डिया व हिन्दुस्तान टाइम्स भी थे मै अपने आगामी चिठ्ठे मे इस पर लिखुन्गा देखियेगा हमारे न्यायालय की राय अश्लीलता पर
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कौन सी कला है ये साधो?
कला नहीं ये तो कालिमा है, दिमाग और दिल का काला पन है
कबीर ने हुसैन बाबा की इससे भी और कुत्सित कालिमा देखीं है हनुमान और सीता के नाम पर भी
कल हुसैन बाबा के इन्दौरिये प्रभाष जोशी की बकबास भी पढ़ी जिसे हमारी परम्परा का नाम दिया है
कबिरा तेरी झोंपड़ी गल कट्यन के पास
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साँच को आँच नही, सब सामने है। लेकिन बुद्दिजीवी या कहु हमारे बुद्दू जीवियों को कुछ नजर नही आता। कला के नाम पर दूसरों की भावनाऒ को आहत करना अगर कला है। भगवान ऎसे लोगो को सद्बबुद्दि दें।
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अगर आपका हिंदुत्व इतना कमजोर है कि 92 साल के एक बूढ़े से उसे खतरा है। तो फिर ये तो बहुत जल्दी खत्म हो जायेगा। अच्छी बात यह है कि हिंदुत्व आप जैसों के बूते नहीं चल रहा है। वह चल रहा है करोड़ों उदार हिंदुओं के बूते, जो अपनी ताकत जानते हैं। हम प्रभाष जोशी के समर्थक नहीं हैं, जो प्रलापी हो चुके हैं। जिन्हे सेमिनारछाप बुद्धिजीवियों की तालियों का रोग लग चुका है। पर हम आपके भी समर्थक नही है, जो फिजूल में हिंदुओँ को डराने में लगे हुए हैं। भरतपुर में कई हिंदू लड़कियों को वेश्या बनाया जाता है, वे सारी हिंदू हैं। भईया उन्हे बचा लो। पर उनके लिए आपका हिंदुत्व नहीं जागेगा। आप धीरे-धीरे वामपंथी बुद्धिजीवियों के रास्ते पर जा रहे हैं, जो सिर्फ लफ्फाजी को संघर्ष मानते हैं।
एक हिंदू
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बस समझ का फेर है ।
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एक पागल सिरफ़िरे का पागल पन ही कहु गा,
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अपनी कलात्मकता के सृजन को किसी भी सम्प्रदाय, वर्ग, धर्म के ईष्टों के साथ इस प्रकार जोडना, कि वह अपने ईष्ट के साथ जोडा जाने पर आपत्तिजनक हो, सिर्फ निन्दनीय ही हो सकता है।
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आपने हुसैन की मानसिकता को अच्छ़ी तरह बताया। एक को पूरे कपड़े और दूसरों को ……।
धर्मनिरपेक्षों के राज में यही न्याय है भैया…
विवेक गुप्ता
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