भारत और भारतीयों के लिए यह शर्म की बात हो न हो कि इक्कीसवीं सदी में भी भारत में ऐसे परिवार हैं जो 12 रूपये प्रतिदिन में गुजारा कर रहे हैं. लेकिन यह गर्व की बात है कि हमारे पास भी एक मुकेश अंबानी हैं जो दुनिया के शीर्ष पांच धनकुबेरों में शामिल हो गये हैं. हो सकता है दो-चार दिनों में वे इतने अमीर न रहें और शेयर बाजार का रूख पलटते ही वे थोड़े गरीब हो जाएं, फिलहाल वे बिल गेट्स, कार्लोस स्लिम और वारेन बफेट के बाद तीसरे ऐसे शख्स हैं जिसके पास 50 अरब डालर (2000 खरब) रूपये से ज्यादा की संपत्ति है. जबकि मुकेश अंबानी के कंपनियों की बाजार में कीमत 40, 09, 325 करोड़ रूपये हो गयी है.
आप यह मानें कि मुकेश अंबानी ने लक्ष्मी निवास आर्सेलर मित्तल (48.4 अरब डालर) को भी पीछे दिया है. यानी निसंदेह अब आपके पास दो ऐसे अमीर भारतीय है जो दुनिया के शीर्ष पांच पूंजीपतियों में शामिल हैं. प्रसार माध्यमों ने इस बात को ऐसे फैलाया है मानों हर भारतीय इस सफलता में शामिल है. वे खुश हो लें जिनके हाथों में रिलांयस का शेयर है, या फिर जो इस बात से ही अमीर होने लगते हैं कि भारतीय उद्योगपति का नाम दुनिया के शीर्ष पांच में आ गया है, मैं तो विरोध में हूं. इसलिए भी कि पूंजीवादी व्यवस्था के खोखलेपन को जानता हूं और इसलिए भी कि अमीरी के इस मुकाम पर पहुंचने के लिए रिलांयस ने वह सब कुछ किया है जिसे भ्रष्टाचार कहते हैं.
शेयर बाजार के रास्ते आनेवाली अमीरी हमेशा छद्म होती है. यह अमीरी तेजड़ियों और मंदड़ियों के मकड़जाल से निकलती है और दलालों का वर्ग इस पूंजी से लोगों को अमीर-गरीब बनाता रहता है. आप कह सकते हैं कि यह आभासीय अमीरी है. एक लाख करोड़ से दो लाख करोड़ और चार लाख करोड़ का खेल वैसे ही खेला जाता है जैसे जुआघर में बैठकर सौ को पांच सौ या पांच सौ को हजार में बदला जाता है. इसलिए इस अमीरी पर झूमने की जरूरत मुझे कभी समझ में नहीं आयी. अगर रिलांयस के शेयर कल से थोक में बिकने लगे तो अचानक रिलांयस के शेयरों की कीमत गिरने लगेगी और मुकेश अंबानी देखते ही देखते अपनी ढेर सारी संपत्ति खो देंगे. क्योंकि जिन शेयर कीमतों की बदौलत वे या फिर कोई अमीर बनता है वह कागज के टुकड़ों पर लिखी गयी अमीरी है.
आप यह मानकर कि इतनी हिस्सेदारी फलां कंपनी में रखते हैं कागज का एक टुकड़ा संभाले रहते हैं जिसे शेयर सर्टिफिकेट कहा जाता है. फिर इसके पीछे का इतिहास भूगोल जरा लंबा-चौड़ा है जिसे संक्षेप में आप फ्राड या धोखाधड़ी कहते हुए आगे बढ़ सकते हैं. तो इस फ्राड की कमान कुछ हाथों में होती है जिसमें कुछ सरकारी लोग भी शामिल होते हैं. हर्षद मेहता इसके बेहतर उदाहरण थे. उस आदमी ने पहली बार शेयर बाजार को अपनी अंगुलियों पर नचाया और फिर तो जैसे रास्ता ही खुल गया. हर्षद मेहता के जमाने में ही एक नाम और उभरा था केतन पारेख. इन लोगों ने शेयर बाजार का प्रयोग करके कईयों को बनाया और कईयों को बिगाड़ा.
शेयर बाजार का किस्सा तो अलग लेकिन मुकेश अंबानी की इस अमीरी में शोषण का अंतहीन इतिहास छिपा हुआ है. सरकारी धोखाधड़ी और प्रशासनिक मशीनरी का दुरूपयोग भी शामिल है. धीरूभाई अंबानी खरीदने में विश्वास रखते थे. और उनकी यह खरीदारी ऊंचे स्तर की होती थी. बाद में रिलांयस में यह परंपरा बन गयी कि हर कोई बिकता है उसे उसकी कीमत मिलनी चाहिए. तो सांसद, मंत्री, नौकरशाह, पत्रकार यहां तक कि सामाजिक कार्यकर्ता भी बिकाऊ माल है. इस खरीद-बिक्री का ही परिणाम है कि रिलांयस इंफो का जन्म हर तरह कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए हुआ. बाद में रिलांयस ने कुछ जुर्माना भर दिया और सारे कानून पटरी पर आ गये. रिटेल सेक्टर और एसईजेड परियोजनाओं में रिलांयस जिस तरीके से काम कर रहा है उससे रिलायंस एक कंपनी न रहकर एक वैकल्पिक व्यवस्था बन जाएगी. आप भारत में नहीं रहना चाहते तो आप रिलांयस की शरण में जा सकते हैं.
एक ताकतवर कंपनी एक संप्रभु सरकार से ज्यादा मायने रखती है. क्योंकि संप्रभु सरकार भी भले ही 12 रूपये प्रतिदिन कमानेवाले परिवार के वोटों पर बनती हो लेकिन काम वह कंपनियों के लिए ही करती है. यह कपोलकल्पित कल्पना नहीं है. यह नीतियों में दिखता है. सरकार कहती है कि दुनिया में जहां भी औद्योगीकरण की शुरूआत हुई है वहां इस तरह से उद्योगपतियों को बढ़ावा दिया गया है. अभी हाल में ब्लू-लेडी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को सही ठहराया कि आम आदमी और पर्यावरण का थोड़ा नुकसान तो उठाया जा सकता है.
मुकेश अंबानी की इस अमीरी में सरकार की भरपूर मदद है. सरकार को इस बात से कोई खास फायदा नहीं है कि एक अरब लोग लखपति हो जाएं, सरकार को इस बात से फायदा है कि एकाध लाख लोग अरबपति हो जाएं. और वह वही काम कर रही है. नीति, सहूलियत हर स्तर पर सरकार मुकेश अंबानी के साथ है. आप भी रिलायंस से अपना दिन शुरू करिए और रिलायंस पर खत्म करिए. अगर आप देशभक्त हैं तो भला आप मुकेश अंबानी को दुनिया का शीर्ष उद्योगपति क्यों नहीं बनाना चाहेंगे? आखिरकार देश के गौरव का सवाल है. …….
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यह देशभक्ति आर्सेलर मित्तल और मुकेश अंबानी से ही क्यों जुड़ती है? यह देश के करोडों बेरोजगार नौजवानों और अपने ही हाथों अपना गला घोंटते किसानों की मुक्ति से क्यों नहीं जुड़ती? क्या देशभक्ति भी भगवान का एक रूप बन गई है?
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वाकई!! हम या हमारा मीडिया गौरव उन्हे ही क्यों समझ रहें है जो देश या समाज के लिए कुछ खास न कर के संपत्ति ही बटोरे जा रहे हैं वह भी नियम कायदों की गलियों से।
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